सात साल हो गये यहाँ रहते हुए।इस शहर में हम इंसान की ज़िन्दगी नही जीतें। हमसे तो अच्छा आपका सल्लू है। उसके लिये इस माहौल में भी सब तरह का जोखिम उठा कर डॉक्टर के पास गयी है। सलीम के साथ जो हुआ हम उसको भूल नही पाये। वो मुसलमान था। हम हिंदू है। उसको हम अपना समझने लगे थे। हमारे दिल पर एक बहुत बड़ा बोझ है। हमारी आत्मा हमसे कह रही है की क्या किया तुमने किसी अपने के साथ? यह कह कर गुल्लू फूट फूट कर रोने लगा। सोनम ने कुछ नही कहा। चुप चाप गाड़ी चलाती रही और गुल्लू को ढाबे के सामने ले जा कर छोड़ दिया। अच्छा राम राम मैडम आप अपना और सल्लू का ख़याल रखना गुल्लू ने कहा। अरे गुल्लू रुको यह तुम्हारे लिये है यह तो लेते जाओ सोनम ने कहा। नही सोनम मैडम हमें अब आप से कुछ नही चाहिये। जो हमने आप से और इस शहर से माँगा वो आप हमको दे नही सके बाक़ी हमें अब कुछ नही चाहिये गुल्लू ने कहा। गुल्लू क्या चाहिये था जो सोनम उसे दे ना सकी? लेखक संजीव बग्गा के उपन्यास को आगे पढ़ कर जानिये।